on
Education
- Get link
- X
- Other Apps
बीकानेर। अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस वर्ष 19 अक्टूबर के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इससे कोजागरी और राज पूर्णिमा भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का काफी महत्व है। ज्योतिषियों के अनुसार पूर्णिमा के दिन चांद सोलह कलाओं के परिपूर्ण होता है। मान्यताओं के मुताबिक इस दिन आकाश से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन चांद पृथ्वी के सबसे निकट होता है। पूर्णिमा के रात्रि चांद दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है। इस सफेद उजाले के बीच पूर्णिमा मनाई जाती है।
शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
शरद पूर्णिमा तिथि आरंभ - 19 अक्टूबर शाम 07 बजे से
शरद पूर्णिमा तिथि समाप्त - 20 अक्टूबर रात 08 बजकर 20 मिनट तक
शरद पूर्णिमा पूजा विधि-
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी में स्नान करके या स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करेंय़
इसके बाद एक लकड़ी की चौकी या पाटे पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर गंगाजल छिड़कें और उसे शुद्ध करें।
चौकी के ऊपर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और उन्हें लाल चुनरी भेंट करें।
फिर लाल फूल, इत्र, नैवेद्य, धूप-दीप, सुपारी आदि से मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा अर्चना करें, तथा लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
पूजन संपन्न होने के बाद आरती करें।
शाम के समय पुन: मां और भगवान विष्णु का पूजन करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें।
इसके अतिरिक्त चावल और गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें।
मध्य रात्रि में मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और प्रसाद के रुप में परिवार के सभी सदस्यों में वितरित करें।
शरद पूर्णिमा महत्व-
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन यानि आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को देवी लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति शरद पूर्णिमा हुई थी। जिस कारण इस तिथि को धन-दायक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं। इस दौरान जो लोग रात्रि में जागकर इनका पूजन व जागरण करते हैं, उन पर इनकी कृपा बरसती हैं और धन-वैभव प्रदान करती हैं।
बता दें शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। तो वही कहा जाता इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है और पृथ्वी पर चारों चंद्रमा की उजियारी फैली होती है। धरती जैसे दूधिया रोशनी में नहा रही होती है ऐसा प्रतीत होता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बरसात होती है, इसलिए शरद पूर्णिमा की रात्रि में चांद की रोशनी में खीर रखने की और अगले दिन सुबह इसके की परंपरा प्रचलित है।
पूर्णिमा के दिन क्यों बनाते हैं खीर?
शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। कहा जाता है कि दूध में लैक्टिक एसिड होता है। ये चंद्रमा की तेज प्रकाश में दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को बढ़ाता है। वह चांदी के बर्तन में रोग- प्रतिरोधक बढ़ाने की क्षमता होती है। इस लिए खीर को चांदी के बर्तन में रखें। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी सबसे तेज होती है। इस कारण खुले आसमान में खीर रखना फायदेमंद होता है।
Comments
Post a Comment
Comment for more information