वामन जयंती आज, पौराणिक कथा और स्तोत्र का पाठ से मिलेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद


     मरुधर गूँज, बीकानेर (26 सितंबर, 2023)। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर वामन जयंती मनाई जाती है। इस बार वामन जयंती 26 सितंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वामन जयंती के दिन जगत के पालनहार की पूरे श्रद्धा-भाव से पूजा करने पर सुख-समृद्धि का आगमन होता है। यदि इस दिन पूजा के समय पद्मपुराण में निहित वामन स्तोत्र का पाठ कर लिया जाए, तो जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।


वामन अवतार की कथा

        भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्रदान करने के लिए वामन अवतार लिया। ऋषि कश्यप और देव माता अदिति के पुत्र के रूप में भगवान विष्णु ने एक बौने ब्रह्मण के रूप में जन्म लिया। इन्हें ही वामन अवतार के नाम से जाना जाता है, ये विष्णु जी का पांचवा अवतार थे। कथा के अनुसार जब असुरराज बलि ने अपने तपोबल और पराक्रम से तीनों लोक पर अधिकार कर लिया। तो हारे हुए देवराज इंद्र ने स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए विष्णु जी से प्रार्थना की। विष्णु जी ने इंद्र की प्रार्थना स्वीकार करके वामन अवतार लिया और बटुक वामन के रूप में राजा बलि के पास दान मांगने के लिए प्रस्तुत हुए।


राजा बलि का उद्धार

        असुर राज बलि, विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र थे और अपनी वचनबद्धता तथा दान प्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। इसलिए भगवान विष्णु ने असुर राज से बटुक वामन के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा। असुरों के गुरू शुक्राचार्य को इसमें छल का आभास था, उन्होंने राजा बलि को दान देने से मना किया। लेकिन अपने दान के प्रति कर्तव्य को देखते हुए असुर राज ने तीन पग भूमि दान देना स्वीकार कर लिया। तब वामन देव ने अपना विराट रूप दिखाते हुए दो पग में ही तीनों लोक की भूमि नाप ली और असुर राज से तीसरा पग रखने के लिए भूमि की मांग की। राजा बलि ने वचन निभाते हुए वामन देव को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन देव का पग सिर पर पड़ते ही राजा बलि पाताल लोक में चले गए। वामन देव ने असुर राज की दान प्रियता से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक पर अनंत काल तक राज करने आशीर्वाद प्रदान किया।


वामन स्तोत्र -

नमस्ते देवदेवेश सर्वव्यापिञ्जनार्दन ।

सत्त्वादिगुणभेदेन लोकव्य़ापारकारणे ॥


नमस्ते बहुरूपाय अरूपाय नमो नमः ।

सर्वैकाद्भुतरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने ॥


नमस्ते लोकनाथाय परमज्ञानरूपिणे ।

सद्भक्तजनवात्सल्यशीलिने मङ्गलात्मने ॥


यस्यावताररूपाणि ह्यर्चयन्ति मुनीश्वराः ।

तमादिपुरुषं देवं नमामीष्टार्थसिद्धये ॥


यं न जानन्ति श्रुतयो यं न जायन्ति सूरयः ।

तं नमामि जगद्धेतुं मायिनं तममायिनम् ॥


यस्य़ावलोकनं चित्रं मायोपद्रववारणं ।

जगद्रूपं जगत्पालं तं वन्दे पद्मजाधवम् ॥


यो देवस्त्यक्तसङ्गानां शान्तानां करुणार्णवः ।

करोति ह्यात्मना सङ्गं तं वन्दे सङ्गवर्जितम् ॥


यत्पादाब्जजलक्लिन्नसेवारञ्जितमस्तकाः ।

अवापुः परमां सिद्धिं तं वन्दे सर्ववन्दितम् ॥


यज्ञेश्वरं यज्ञभुजं यज्ञकर्मसुनिष्ठितं ।

नमामि यज्ञफलदं यज्ञकर्मप्रभोदकम् ॥


अजामिलोऽपि पापात्मा यन्नामोच्चारणादनु ।

प्राप्तवान्परमं धाम तं वन्दे लोकसाक्षिणम् ॥


ब्रह्माद्या अपि ये देवा यन्मायापाशयन्त्रिताः ।

न जानन्ति परं भावं तं वन्दे सर्वनायकम् ॥


हृत्पद्मनिलयोऽज्ञानां दूरस्थ इव भाति यः ।

प्रमाणातीतसद्भावं तं वन्दे ज्ञानसाक्षिणम् ॥


यन्मुखाद्ब्राह्मणो जातो बाहुभ्य़ः क्षत्रियोऽजनि ।

तथैव ऊरुतो वैश्याः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥


मनसश्चन्द्रमा जातो जातः सूर्यश्च चक्षुषः ।

मुखादिन्द्रश्चाऽग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥


त्वमिन्द्रः पवनः सोमस्त्वमीशानस्त्वमन्तकः ।

त्वमग्निर्निरृतिश्चैव वरुणस्त्वं दिवाकरः ॥


देवाश्च स्थावराश्चैव पिशाचाश्चैव राक्षसाः ।

गिरयः सिद्धगन्धर्वा नद्यो भूमिश्च सागराः ॥


त्वमेव जगतामीशो यन्नामास्ति परात्परः ।

त्वद्रूपमखिलं तस्मात्पुत्रान्मे पाहि श्रीहरे ॥


इति स्तुत्वा देवधात्री देवं नत्वा पुनः पुनः ।

उवाच प्राञ्जलिर्भूत्वा हर्षाश्रुक्षालितस्तनी ॥


अनुग्राह्यास्मि देवेश हरे सर्वादिकारण ।

अकण्टकश्रियं देहि मत्सुतानां दिवौकसाम् ॥


अन्तर्यामिन् जगद्रूप सर्वभूत परेश्वर ।

तवाज्ञातं किमस्तीह किं मां मोहयसि प्रभो ॥


तथापि तव वक्ष्यामि यन्मे मनसि वर्तते ।

वृथापुत्रास्मि देवेश रक्षोभिः परिपीडिता ॥


एतन्न हन्तुमिच्छामि मत्सुता दितिजा यतः ।

तानहत्वा श्रियं देहि मत्सुतानामुवाच सा ॥


इत्युक्तो देवदेवस्तु पुनः प्रीतिमुपागतः ।

उवाच हर्षयन्साध्वीं कृपयाऽभि परिप्लुतः ॥


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