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नई दिल्ली। यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने जो मोदी से कहा वह मान लिया कि अब 'इण्डिया' नहीं 'भारत' होगा देश का नाम। 99 प्रतिशत लाग समझ ही नहीं पाए मोदी का असली गेम अचानक जी-20 के बीच क्यों बदला जा रहा है देश का नाम। कितना बदल जाएगा सरकारी सिस्टम, अगर इण्डिया की जगह भारत हुआ नाम? जिस काम की हिम्मत इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह जैसे बड़े नेता नहीं कर पाये। मोदी सरकार ने कैसे पूरा कर दिया। मोदी सरकार ने अब दिखादिया कि इण्डिया का नाम अब भारत ही होगा और होना ही चाहिए। मोदी सरकार ने 18से 22 सितम्बर तक संसद में विशेष सत्र बुलाया है। इस सत्र को लेकर कोई साफ नहीं था। इस सत्र में कौनसा बिल लाये जायेंगे। अब चर्चा होने लगी है कि देश का नाम इण्डिया नहीं भारत को लेकर और आर्टिकल-1 में संसाोधन लेकर ये विशेष सत्र बुला रही है। हाल ही में जी-20 कार्यक्रमों में राष्ट्र प्रमुखों को राष्ट्रपति द्वारा जो न्योता भेजा गया। उसमें प्रेजिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है। जबकि इससे पहले प्रेजिडेंट ऑफ इंडिया लिखा जाता था।
साल 1947 में सविधान बनाने के लिए सविधान सभा बनाई गई। जिसमें हर प्रांत से सदस्यों को चुना गया। 18 नवम्बर 1947 को सविधान मशोदा तैयार किया गया। तो देश का नाम रखने को लेकर तिखी बहस हुई सविधान सभा की बेहश की शुरूआत एचपी कामन ने की और उन्होंने देश का नाम भारत रखने का सुझाव दिया। कामन ने कहा कि एक देश दो नाम इण्डिया और भारत दो नामों के खिलाफ थे। वो सिर्फ भारत ही नाम रखना चाहते थे। आर्टिकल-१ में तब लिखा गया था 'इण्डिया देटिज भारत' कामन इसका विरोध कर रहे थे।
सविधान सभा की एक ओर सीट से गोविन्द दास ने भी इण्डिया नाम का विरोध किया था। सेठ गोविन्द दास ने यह भी कह दिया था कि महात्मा गांधी ने भी भारत माता की जय के नारे के साथ ही आजादी के आन्दोलन चलाये। उन्होंने पुराणों के साथ-साथ चीनी हिंसानों की खिताबों का जिक्र किया। जिसमें इण्डिया नहीं भारत लिखा गया है।
सविधान सभा के सदस्य केवी राव ने भी भारत नाम की सहमति जतायी थी। पीएम गुप्ता, श्रीराम सहाय, कमलापति त्रिपाठी, और हरगोविन्द जैसे सदस्यों ने भी भारत नाम रखने का समर्थन किया। कमलापति त्रिपाठी की इसी बात पर भीम राव अम्बेडकर से तिखी बहस हो गई। संसोधन के लिए वोटिंग हुई तो सारे प्रस्ताव गिर गये। आखिर में आर्टिकल-१ ही खड़ा रहा जिसमें लिखा गया 'इण्डिया देटिज भारतÓ लेकिन इण्डिया का नाम भारत होना चाहिए। ये अभी की मांग नहीं है। ये आजादी के समय की मांग है।
सन् 2015 में योगी ने एक सांसद में एक प्राइवेट बिल पेश किया। उसमें उन्होंने संविधान में 'इण्डिया देटिज भारत' के स्थान पर 'इण्डिया देटिज हिन्दूस्तान' लिखे जाने का समर्थन किया। इण्डिया को बदल कर भारत की शुरूआत पिछले महिने अगस्त-2023 से हुई। आइडिया आया कैसे अभी कुछ दिन पहले जैन समाज के कार्यक्रम में मोहन भागवत बोल रहे थे उन्होंने एक बात कही हमारे देश का नाम सदियों से भारत ही है। एक बात पर जोर दिया कि भाषा कोई भी हो पर नाम एक ही रहता है। मोहन भागवत ने सुझाव दिया और अपिल कि सरकार से की इस दिशा में काम करना चाहिए। हमें व्यवहारीक देशों में इण्डिया का नाम बन्द कर देना चाहिए। और भारत नाम इस्तेमाल करना चाहिए। तभी बदलाव आयेगा। हमें आपने देश को भारत कहना होगा। साथ दूसरों को ये ही समझाना होगा। अपने देश को भारत कहना और दूसरों को भी समझाना का इससे अच्छा मौका फिर कभी नहीं आयेगा। जबकि 20 देशों के बड़े मुल्कों के नेताओं के पास ऐसे दस्तावेज हो जिस पर गर्वमेन्ट ऑफ इण्डिया के स्थान पर गर्वमेन्ट ऑफ भारत लिखा हो। आप सोचकर देखिए कि दुनिया की भारत पर निगाह होगी। तब पूरी दुनिया की इण्डिया पर नहीं भारत को भारत के नाम से सम्बोधित किया जायेगा। साथ ही दुनिया को अच्छी तरह से समझाया जायेगा।
विदेश से सारे मेहम्मानों को भारत के कल्चर, भारत की भाषा, भारत की डेवोक्रेसी को सामने रखते हुए ये एक अच्छा मौका होगा।जो सालों बाद भारत के हाथ लगा है। मोदी सरकार ने जी-20 के मौके को हाथों हाथ लिया और इसमें बदलाव कर दिये। मोहन भागवत से पहले इसी साल मानसून सत्र में भी भाजपा सांसद नरेश बंसल ने इण्डिया से बदल कर भारत करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि इण्डिया का नाम आवेसीक गुलामी का प्रतीक है। सविधान से हटा देना चाहिए। ब्रिटेश काम में थोपा गया था। देश का असली प्राचीन नाम भारत ही जिसकी जड़े प्राचीन संस्कृत ग्रांथों में भी है और हजारों वर्षों से इसका उपयोग किया जा रहा है। देश का नाम भारत कर देना चाहिए। या इण्डिया कर देना चाहिए। भारत के समर्थन में आप अपनी राय कॉमेन्ट बॉक्स में लिख दीजिए- 'भारत माता की जय'। ब्यूरो रिपोर्ट मरूधर गूंज, बीकानेर।
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