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मरुधर गूंज, नई दिल्ली (30 सितम्बर, 23)। इस वर्ष पितृ पक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा यानी 29 सितंबर से शुरू हो चुका है और इसका समापन अश्विनी कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी 14 अक्टूबर को होगा। पितृपक्ष के दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा की जाती है, श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए लोग पितृ पक्ष में पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं। इससे पितर प्रसन्न होकर परिवार पर अपनी कृपा बरसाते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक तिथि का महत्व है, लेकिन तीन तिथियां सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन तीन तिथियों पर पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।महत्वपूर्ण है ये तीन तिथियां
2 अक्टूबर को भरणी श्राद्ध है। भरणी श्राद्ध, मृत्यु के एक वर्ष बाद ही किया जाता है। 2 अक्टूबर को भरणी नक्षत्र शाम 6.24 बजे तक रहेगा। यदि किसी व्यक्ति की शादी से पहले ही मृत्यु हो गई है तो उसका श्राद्ध पंचमी तिथि को करना चाहिए।
इस बार 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन का भी काफी महत्व है। जिस भी जातक को अपने पितरों की श्राद्ध की तिथि याद नहीं है या अस्पष्ट जानकारी है, वे इस दिन श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन सभी पितरों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते है।
डिसक्लेमर - 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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