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मरुधर गूंज, नई दिल्ली (01 अक्टूबर, 23)। पितृ पक्ष के 16 दिनों के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं। पितरों को तृप्त करने के लिए श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान-पुण्य करने का भी बहुत महत्व होता है। इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू हो चुका है और आश्विन मास की अमावस्या यानी 14 अक्टूबर 2023 तक चलेगा। कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर अपने परिवार से मिलने धरती पर आते हैं। पितृपक्ष में तर्पण करते समय एक विशेष प्रकार के फूल का उपयोग करना महत्वपूर्ण होता है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं।
ज्योतिषाचार्य प्रेम शंकर शर्मा के अनुसार पितरों को काश के फूल बहुत पसंद होते हैं। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि यदि तर्पण पूजा में काश के फूलों का उपयोग नहीं किया जाता है, तो श्राद्ध कर्म पूरा नहीं माना जाता है।
इन फूलों का करें उपयोग
श्राद्ध कर्म करते समय कुछ बातों और नियमों का ध्यान रखना चाहिए। उन्हीं नियमों में से एक है तर्पण में काश के फूलों का उपयोग करना। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण में किसी भी अन्य फूलों का उपयोग नहीं किया जाता है। बल्कि पितृ पक्ष में काश के फूल का ही प्रयोग महत्वपूर्ण माना गया है। यदि काश के फूल उपलब्ध न हों, तो श्राद्ध पूजा में मालती, जूही और चंपा जैसे सफेद फूलों का भी उपयोग किया जा सकता है।
इन फूलों का करें उपयोग
श्राद्ध कर्म करते समय कुछ बातों और नियमों का ध्यान रखना चाहिए। उन्हीं नियमों में से एक है तर्पण में काश के फूलों का उपयोग करना। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण में किसी भी अन्य फूलों का उपयोग नहीं किया जाता है। बल्कि पितृ पक्ष में काश के फूल का ही प्रयोग महत्वपूर्ण माना गया है। यदि काश के फूल उपलब्ध न हों, तो श्राद्ध पूजा में मालती, जूही और चंपा जैसे सफेद फूलों का भी उपयोग किया जा सकता है।
डिसक्लेमर - 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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