नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा का पूजन कर मंत्रो के साथ करें आरती





        मरुधर गूंज, बीकानेर (17 अक्टूबर, 23)।18 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र का चौथा दिन है। नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कूष्मांडा देवी को ब्रह्मांड की आदिशक्ति माना जाता है। मां दुर्गा के सभी स्वरूपों में मां कूष्मांडा का स्वरूप सबसे उग्र माना गया है। मां कुष्मांडा सूर्य के समान तेज देती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब संपूर्ण संसार में अंधकार का छा गया था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। माना जाता है कि कुष्मांडा माता की पूजा करने से बुद्धि में वृद्धि होती है। देवी कुष्मांडा की विधिपूर्वक पूजा करने के बाद उनकी आरती के साथ पूजा समाप्त होनी चाहिए।

मां कूष्मांडा पूजा विधि 

    शारदीय नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा करते समय पीले रंग के वस्त्र पहनें। पूजा के समय देवी को पीला चंदन ही लगाएं। इसके बाद कुमकुम, मौली, अक्षत चढ़ाएं। पान के पत्ते पर थोड़ा सा केसर लेकर ऊँ बृं बृहस्पते नम: मंत्र का जाप करते हुए देवी को अर्पित करें। अब ॐ कुष्माण्डायै नम: मंत्र की एक माला जाप करें और दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। मां कूष्मांडा को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। इस दिन पूजा में देवी को पीले वस्त्र, पीली चूड़ियां और पीली मिठाई अर्पित करें। देवी कुष्मांडा को पीला कमल प्रिय है। मान्यता है कि इसे देवी को अर्पित करने से साधक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।


इस चीज का लगाएं भोग


        मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। इससे बुद्धि, यश और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होगी। मालपुए का भोग लगाने के बाद स्वयं खाएं और ब्राह्मण को भी दें।


मां कूष्मांडा मंत्र 

 ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’

देवी कूष्मांडा ध्यान मंत्र-

वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्ण्
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव चण्
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्ण्
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

दृ दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्ण्
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

दृ जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्ण्
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

मां कूष्मांडा की आरती 

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ 
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥ 
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥ 
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ 
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥ 
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥ 
मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥ 
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥ 
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥ 
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां कूष्मांडा की आरती 

चौथा जब नवरात्र होए कूष्मांडा को ध्याते।
जिसने रचा ब्रह्मांड यहए पूजन है

आद्य शक्ति कहते जिन्हेंए अष्टभुजी है रूप।
इस शक्ति के तेज से कहीं छांव कहीं धूप॥

कुम्हड़े की बलि करती है तांत्रिक से स्वीकार।
पेठे से भी रीझती सात्विक करें विचार॥

क्रोधित जब हो जाए यह उल्टा करे व्यवहार।
उसको रखती दूर मांए पीड़ा देती अपार॥
सूर्य चंद्र की रोशनी यह जग में फैलाए।
शरणागत की मैं आया तू ही राह दिखाए॥

नवरात्रों की मां कृपा कर दो मां
नवरात्रों की मां कृपा करदो मां॥

जय मां कूष्मांडा मैया।



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