पितर पक्ष की अष्टमी पर करें शिव चालीसा का पाठ, पितर दोष से मिलेगी मुक्ति

 


        मरुधर गूंज, बीकानेर (05 अक्टूबर, 23)। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में पितर पक्ष मनाया जाता है। यह पर्व पितरों को समर्पित होता है। इस दौरान पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। साथ ही पिंडदान और श्राद्ध कर्म भी किए जाते हैं। पितर पक्ष की अष्टमी तिथि पर कालाष्टमी भी है। इस शुभ अवसर पर दुर्लभ 'शिव' योग का निर्माण हो रहा है। इस समय में शिव जी की पूजा-उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही पितर दोष से भी मुक्ति मिलती है। अगर आप भी पितर दोष से पीड़ित हैं, तो पितर पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कालाष्टमी पर पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ और आरती करें।

शिव योग

        कालाष्टमी पर दुर्लभ शिव योग का बन रहा है। इस योग में भगवान शिव की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही मृत्यु लोक में स्वर्ग लोक समान सुखों की प्राप्ति होती है। शिव योग का निर्माण दिन भर है। कालाष्टमी पर निशा काल में पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।पितर पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान शिव कैलाश पर्वत पर माता पार्वती के संग दिन भर रहेंगे। इस दौरान रुद्राभिषेक करने से घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। साथ ही शिव चालीसा का पाठ और आरती करें। 


- शिव चालीसा -

- दोहा -


श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।  कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥


जय गिरिजा पति दीन दयाला।   सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥


भाल चन्द्रमा सोहत नीके।   कानन कुण्डल नागफनी के॥


अंग गौर शिर गंग बहाये।   मुण्डमाल तन छार लगाये॥


वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।   छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥


मैना मातु की ह्वै दुलारी।   बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥


कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।   करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥


नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।   सागर मध्य कमल हैं जैसे॥


कार्तिक श्याम और गणराऊ।   या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥


देवन जबहीं जाय पुकारा।   तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥


किया उपद्रव तारक भारी।   देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥


तुरत षडानन आप पठायउ।   लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥


आप जलंधर असुर संहारा।   सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥


त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।   सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥


किया तपहिं भागीरथ भारी।   पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥


दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।   सेवक स्तुति करत सदाहीं॥


वेद नाम महिमा तव गाई।   अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥


प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।   जरे सुरासुर भये विहाला॥


कीन्ह दया तहँ करी सहाई।   नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥


पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।   जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥


सहस कमल में हो रहे धारी।   कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥


एक कमल प्रभु राखेउ जोई।   कमल नयन पूजन चहं सोई॥


कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।   भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥


जय जय जय अनंत अविनाशी।   करत कृपा सब के घटवासी॥


दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।   भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥


त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।   यहि अवसर मोहि आन उबारो॥


लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।   संकट से मोहि आन उबारो॥


मातु पिता भ्राता सब कोई।   संकट में पूछत नहिं कोई॥


स्वामी एक है आस तुम्हारी।   आय हरहु अब संकट भारी॥7॥


धन निर्धन को देत सदाहीं।   जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥


अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।   क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥


शंकर हो संकट के नाशन।   मंगल कारण विघ्न विनाशन॥


योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।   नारद शारद शीश नवावैं॥8॥


नमो नमो जय नमो शिवाय।   सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥


जो यह पाठ करे मन लाई।   ता पार होत है शम्भु सहाई॥


ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।   पाठ करे सो पावन हारी॥


पुत्र हीन कर इच्छा कोई।   निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥


पण्डित त्रयोदशी को लावे।   ध्यान पूर्वक होम करावे ॥


त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।   तन नहीं ताके रहे कलेशा॥


धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।   शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥


जन्म जन्म के पाप नसावे।   अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥


कहे अयोध्या आस तुम्हारी।   जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥


॥ दोहा ॥


नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।   तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥


मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।   अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥


- शिव आरती -


ॐ जय शिव ओंकारा,स्वामी जय शिव ओंकारा।   ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।   हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।   त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।   चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।   सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी ।   सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।   प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


त्रिगुणस्वामी जी की आरती, जो कोइ नर गावे ।  कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे ॥


ॐ जय शिव ओंकारा...॥


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