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मरुधर गूंज, बीकानेर (20 अक्टूबर, 23)। कल शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है। मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और डरावना है। उनका वर्ण काला है। वह शत्रुओं में भय पैदा कर देने वाली देवी हैं। शत्रुओं का काल हैं। इस वजह से उनको कालरात्रि कहा जाता है। काशी के ज्योतिषाचार्य प्रेम शंकर शर्मा कहते है कि मां दुर्गा ने रक्तबीज के वध के समय कालरात्रि का स्वरूप धारण किया था। गर्दभ पर सवार, खुले केश वाली, हाथों में कटार और व्रज धारण करने वाली मां कालरात्रि की पूजा करने से भय दूर होता है, संकटों से रक्षा होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। शुभफल प्रदान करने के कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है। इस देवी की आराधना से अकाल मृत्यु का डर भी भाग जाता है, रोग और दोष भी दूर होते हैं। यहां जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, भोग आदि के बारे में बताया है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
आज प्रात:स्नान के बाद व्रत और मां कालरात्रि के पूजन का संकल्प लें। उसके बाद मां कालरात्रि को जल, फूल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, फल, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करते हुए पूजन करें। इस दौरान मां कालरात्रि के मंत्र का उच्चारण करते रहें। उसके बाद मां को गुड़ का भोग लगाएं। फिर दुर्गा चालीसा, मां कालरात्रि की कथा आदि का पाठ करें। फिर पूजा का समापन मां कालरात्रि की आरती से करें। पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना करें और जो भी मनोकामना हो, उसे मातारानी से कह दें।
मां कालरात्रि का प्रिय फूल और रंग
इस देवी को लाल रंग प्रिय है। इसलिए इनकी पूजा में लाल गुलाब या लाल गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए। हालांकि इनको रातरानी का फूल भी चढ़ाना शुभ होता है।
मां कालरात्रि का प्रिय भोग
नवरात्रि के सातवे दिन की पूजा में माता कालरात्रि को आप गुड़ का भोग लगाएं। इससे देवी कालरात्रि प्रसन्न होती है।
मां कालरात्रि आराधना मंत्र
'ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
'दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।
मां कालरात्रि पूजा का मंत्र
ज्वाला कराल अति उग्रम शेषा सुर सूदनम।
त्रिशूलम पातु नो भीते भद्रकाली नमोस्तुते।।
या
ओम देवी कालरात्र्यै नमः।
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥ कालरात्रि जय…
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥ कालरात्रि जय…
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥ कालरात्रि जय…
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥ कालरात्रि जय…
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
डिसक्लेमर - 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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