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मरुधर गूंज, बीकानेर (24 अक्टूबर, 23)। पापांकुशा एकादशी हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष पापांकुशा एकादशी 25 अक्टूबर को पड़ रही है। एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। एकादशी तिथि का व्रत रखने से विशेष कार्यों में सफलता भी मिलती है। पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए भक्त श्रद्धापूर्वक एकादशी की तिथि पर लक्ष्मी नारायण की पूजा करते हैं। आइए, जानें पापाकुंशा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।
एकादशी शुभ मुहूर्त
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 24 अक्टूबर को दोपहर 3.14 बजे शुरू होगी और 25 अक्टूबर को दोपहर 12.32 बजे समाप्त होगी। इस तरह उदया तिथि के अनुसार, पापाकुंशा एकादशी 25 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
पापाकुंशा एकादशी की तिथि पर ब्रह्म बेला में जागें और भगवान विष्णु को प्रणाम करें, व्रत का संकल्प करें। नित्यकर्म से निवृत्त होकर गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें। आचमन करके स्वयं को शुद्ध कर लें। इस दिन पीले वस्त्र पहनें और सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद पंचोपचार करके भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले रंग के फल, फूल और मिठाइयां अवश्य अर्पित करें। पूजा के दौरान विष्णु चालीसा का पाठ करें और मंत्रों का जाप करें। अंत में आरती करें। पूरे दिन निराहार रहें। रात्रि के समय आरती करें और फलाहार करें। अगले दिन पूजा संपन्न करके अपना व्रत खोलें।
पारण का समय
पापाकुंशा एकादशी का व्रत पारण समय 26 अक्टूबर को सुबह 6:28 बजे से है। जो कि सुबह 08:43 बजे तक रहेगा।
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता।
जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं।
कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करके को कहा।
महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। जब यमराज के यमदूत ने इस चमत्कार को देखा तो वह बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस लौट गए। जय श्री हरि !
डिसक्लेमर - 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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