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मरुधर गूंज, बीकानेर (18 अक्टूबर, 23)। शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व का पांचवां दिन 19 अक्टूबर को होगा। पांचवें दिन लोग मां स्कंदमाता की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि बुध ग्रह देवी स्कंदमाता द्वारा शासित हैं। स्कंद युद्ध देवता कार्तिकेय का वैकल्पिक नाम है, और माँ स्कंद भगवान स्कंद को अपने शिशु रूप में अपने हाथों में पकड़े हुए हैं, इसलिए उन्हें स्कंदमाता के रूप में पूजा जाता है। देवी स्कंदमाता सिंह पर विराजमान हैं और मुरुगन को गोद में उठाए हुए हैं। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है और वे भगवान गणेश के भाई हैं। देवी स्कंदमाता को चार हाथों से चित्रित किया गया है। वह अपने ऊपर के दोनों हाथों में कमल के फूल लिए हुए हैं। वह अपने एक दाहिने हाथ में मुरुगन को रखती है और दूसरे को अभय मुद्रा में रखती है। वह कमल के फूल पर विराजमान हैं और इसीलिए उन्हें पद्मसानी भी कहा जाता है।
जानिये कैसे करें उनकी आराधना और मां का मंदिर कहाँ - कहाँ है।
वाराणसी
पुरोहितों और ज्योतिष के जानकारों के अनुसार वाराणसी के जगतपुरा क्षेत्र के बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में दुर्गा के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता का मंदिर है। देवी के इस रूप का उल्लेख काशी खंड और देवी पुराण में इस स्वरूप का उल्लेख मिलता है।
काशी की बुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं माता
मान्यता है कि एक समय देवासुर नाम के राक्षस ने वाराणसी में संतों आम लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिया। इस पर मां स्कंदमाता ने उस राक्षस का विनाश कर दिया। इस घटना के बाद यहां माता की पूजा की जाने लगी। मान्यता है कि माता यहां विराजमान हो गईं और काशी की बुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं।
विदिशा
विदिशा (मध्य प्रदेश) में पुराने बस स्टैंड के पास सांकल कुआं के पास दुर्गाजी का विशाल मंदिर है। इसकी स्थापना 1998 में हुई थी, यहां माता दुर्गा का स्कंदमाता स्वरूप विराजमान है। मंदिर के पुजारी के अनुसार 40 से 45 साल पहले इस जगह पर झांकी सजाई जाती थी।
मां स्कंदमाता का मंत्र
ॐ देवी स्कंदमातायै नमः
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः
सिंहसंसंगतां नित्यं पदमंचित कर्दवाय
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी
मां स्कंदमाता प्रार्थना
सिंहसनगत नित्यम पद्मनचिता कराद्वय
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी
मां स्कंदमाता स्तुति
या देवी सर्वभूतेशु मा स्कंदमाता रूपेण संस्था
नमस्तास्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
स्कंदमाता पूजा विधि
मां स्कंद माता की मूर्ति की स्थापना कर पूजा शुरू करें। मूर्ति को गंगा जल से शुद्ध करें। चांदी, तांबे या मिट्टी के पानी से भरे बर्तन में नारियल रखकर कलश स्थापना करें। पूजा और व्रत के लिए संकल्प लें, फिर सभी स्थापित देवताओं के साथ 5 वीं नवरात्रि माता की षोडोपचार पूजा करें। वैदिक और सप्तशती मंत्रों का जाप करें। फिर, सभी देवताओं को सभी प्रासंगिक पूजन सामग्री अर्पित करें। अंत में स्कंदमाता आरती गाएं और स्कंद माता की कथा सुनें
स्कंदमाता की कथा
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है।
स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।
इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।
उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहू मैं। हरदम तुझे ध्याता रहू मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाडो पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इंद्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खंडा हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥
डिसक्लेमर - 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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