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मरुधर गूंज, बीकानेर (6 नवम्बर, 23)। रमा एकादशी का व्रत हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत रखने से ब्रह्महत्या सहित कई पापों से मुक्ति मिल जाती है। रमा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जानें इस एकादशी व्रत के बारे में विस्तार से -
जानें कब है रमा एकादशी व्रत
पंचांग के अनुसार, रमा एकादशी व्रत 9 नवंबर को रखा जाएगा, जो सुबह 8.23 मिनट पर शुरू होगा और 9 नवंबर को सुबह 10.41 मिनट पर समाप्त होगी। पंचांग के मुताबिक, उदया तिथि में होने के कारण रमा एकादशी का व्रत 9 नवंबर को रखा जाएगा। पारण का समय 10 नवंबर को सुबह 6.39 मिनट से लेकर 8.50 मिनट के बीच होगा।
पुराणों के अनुसार, मुचुकंद नाम का एक प्रतापी राजा था। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। पिता मुचुकंद ने अपनी बेटी चंद्रभागा की शादी राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से करा दिया। राजकुमार शोभन की एक आदत थी कि वो एक भी समय बिना खाए नहीं रहता था। इसी बीच शोभन एक बार कार्तिक के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया। उस दिन रमा एकादशी का व्रत भी था। चंद्रभागा के राज्य में सभी रमा एकादशी व्रत का नियम पूर्वक पालन करते थे तो दामाद शोभन से भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया। परंतु, शोभन इस बात को लेकर काफी परेशान हो गया। इसके बाद अपनी परेशानी को लेकर शोभन पत्नी चंद्रभागा के पास पहुंचा। तब चंद्रभागा ने कहा कि ऐसे में तो आपको राज्य के बाहर ही जाना पड़ेगा, क्योंकि पूरे राज्य के लोग इस व्रत के नियम का पालन करते हैं। यही नहीं आज के दिन यहां के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं। चंद्रभागा की इस बात को सुनने के बाद आखिरकार शोभन को रमा एकादशी व्रत रखना ही पड़ा। लेकिन, पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद चंद्रभागा अपने पिता के यहां ही रहने लगी।
रमा एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी व्रत के पुण्य प्रताब से शोभन का अगला जन्म हुआ। इसबार उन्हें मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर में पहुंचे। वहां सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखकर ही पहचान लिया। वहां ब्राह्मणों को देख शोभन भी अपने सिंहासन से उठकर पूछा कि यह सब कैसे हुआ। इसके बाद तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को पूरी बात बताई। चंद्रभागा बेहद खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो गई। इसके बाद वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची। फिर, मंदरांचल पर्वत पर गई और पति शोभन के पास पहुंच गई। इस तरह एकादशी व्रतों के पुण्य प्रभाव से दोनों का फिर से मिलन हो गया। कहते हैं, तभी से मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है। साथ ही उसकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं।
रमा एकादशी आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है |
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहे ।। ॐ ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबली की।। ॐ ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैशाख माह वाली ।। ॐ ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
डिसक्लेमर - 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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