मरुधर गूंज, बीकानेर (08 दिसम्बर, 2023)। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का सीएम कौन होगा? हर किसी के पास यही सवाल है। ऐसी संभवानाएं व्यक्त की जा रही हैं कि इन प्रदेशों की कमान नए लोगों को मिलने जा रही है। ये तीनों राज्य बीजेपी के पुराने गढ़ रहे हैं। सबसे पहले बीजेपी इन्हीं राज्यों में सत्ता का सुख ले सकी थी। बीजेपी के सबसे पुराने कार्यकर्ता और नेता भी इन्हीं प्रदेशों से हैं। ये भी बहुत हद तक सही है कि इन प्रदेशों में जो पुराने नेता हैं वो जमीन से जुड़े लोग हैं और उनकी अपनी फैन फॉलोइंग है. इन लोगों ने बीजेपी को अपने खून-पसीने सींचा है। तो फिर क्या कारण है कि इन प्रदेशों में पुराने लोगों को किनारे करने की बात चल रही है। आइये देखते हैं कि ऐसी बातें क्यों हो रही हैं कि इन राज्यों में नए लोगों को सीएम बनाया जा सकता है।
बीजेपी और आरएसएस सोचती है आगे की
भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस हमेशा से 20 साल आगे के बारे में सोचती रही है। यही कारण रहा है कि 2010 में ही लाल कृष्ण आडवाणी को आगे के लिए रेड सिग्नल दिखा दिया गया था। जबकि उस दौर में पार्टी और संघ दोनों में लाल कृष्ण आडवाणी का बहुत जोर था। इसके बाद 2014 आते-आते पीएम पद के दावेदार के रूप नरेंद्र मोदी का नाम आगे रखा जा चुका था। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जो भी नेता हैं उन्हें दो दशकों से जनता देख रही है। इस बार का चुनाव तो किसी भी तरह पार्टी ने निकाल लिया है पर अगर चेहरे और रणनीति वही रही तो आगामी सालों में बहुत मुश्किल हो जाएगी। चेहरे तो बदले जा सकते हैं पर नीतियां नहीं बदली जा सकती हैं। जब वसुंधरा, शिवराज और रमन सिंह पर 2 दशक पहले पार्टी ने दांव खेला उसका नतीजा रहा कि बीजेपी अभी तक इन राज्यों में झंडे गाड़ रही थी। इसी तरह अब नई पौध नहीं लगेगी तो आगे के सालों में पार्टी किसकी छांव में सुकून महसूस कर सकेगी।
लोकसभा चुनाव से पहले गुटबाजी पर लगाम
दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए इन तीनों राज्यों में जीत से भी अहम 2024 का लोकसभा चुनाव रहा है। बीजेपी चाहती है कि इन प्रदेशों की सभी लोकसभा सीटों को फिर से जीता जा सके। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं और इनमें से 28 पर बीजेपी का कब्जा है। इसी तरह राजस्थान की 25 में से 24, छत्तीसगढ़ की 11 में से नौ सीटों पर बीजेपी काबिज है। दिक्कत यह है कि किसी भी पुराने चेहरों को सीएम बनाने से मुश्किल ये होने वाली है कि दूसरा गुट अंदर ही अंदर पार्टी के खिलाफ काम करने लगेगा। यही गुटबाजी खत्म करने के लिहाज से ही विधानसभा चुनावों में पार्टी ने किसी भी राज्य में किसी को सीएम फेस नहीं बनाया। इसका फायदा यह रहा कि सभी गुटों ने जीत के लिए जान लगा दी। सभी इस उम्मीद में काम कर रहे थे कि अगर मेहनत रंग लाई तो हो सकता है कि सीएम का पद उन्हें ही मिल जाए। इसी तरह किसी भी नए चेहरे के सीएम बनने से सभी पुराने लोगों का सहयोग पार्टी को आगामी लोकसभा चुनावों में मिल सकेगा।
राजस्थान में वसुंधरा का 5 साल से होना अलग-थलग
राजस्थान में वसुंधरा राजे सबसे वरिष्ठ हैं। राजस्थान में लोकप्रिय भी हैं। उनकी सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ को उनकी लोकप्रियता का पैमाना माना जा सकता है। पर पिछले पांच साल उन्होंने जिस तरह बिताएं हैं वो किसी भी पार्टी के किसी भी नेता के लिए आदर्श नहीं है। प्रदेश की 2 बार सीएम रहने के बावजूद उन्होंने पार्टी की राजस्थान की इकाई से दूरी बना रखी थी। पार्टी की बैठकों से दूर रहना और पार्टी के समानांतर खुद को कायम रखकर खुद को केंद्रीय नेतृत्व से दूर कर लिया था। चीफ मिनिस्टर रहने के दौरान भी कई बार केंद्रीय नेतृत्व के फैसलों में बाधक बनती रही हैं। ऐसे में कोई भी लीडरशिप उन्हें किसी महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठाकर क्यों बिना बात के सरदर्द मोल लेना चाहेगी।
काबिल लोगों की केंद्र में जरूरत
शिवराज सिंह चौहान ने निसंदेह मध्य प्रदेश में अपने काबिलियत की नई परिभाषा गढ़ दी है। मध्यप्रदेश में मिल प्रचंड जीत में उनकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। शिवराज सिंह चौहान जैसे परिपक्व नेताओं की जरूरत केंद्र में भी है। केंद्र में कई नेता अब अभिभावक मंडल में जाने की उम्र के हो गए हैं। शिवराज को भविष्य की बड़ी भूमिका के लिए भी तैयार किया जा सकता है। बीजेपी मानकर चल रही है कि केंद्र में उसकी ही सरकार आनी है। ऐसे में मोदी-शाह-राजनाथ-गडकरी की टीम में एक पुराने कद्दावर साथी की और जरूरत महसूस हो रही है। दूसरी ओर मध्य प्रदेश में अगले दो दशकों के लिए नया नेतृत्व तैयार करना अब जरूरी हो गया है।
ओबीसी या आदिवासी फैक्टर जरूरी
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पुराने चेहरे रमन सिंह जिनकी उम्र 71 साल हो गई है। रमन सिंह प्रदेश के 3 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पिछले 5 साल उन्होंने भी रिटारमेंट वाले ही गुजारे हैं। हालांकि चुनावों में उन्होंने खूब भागदौड़ की है। पर बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि छ्त्तीसगढ़ में इस बार आदिवासियों के वोट खूब मिले हैं। पिछड़ी जातियों के वोट भी बीजेपी को बहुतायत में मिले हैं। कांग्रेस की लीडरशिप प्रदेश में पिछड़ी जाति वाली रही है। भविष्य में भी जनता का समर्थन मिलता रहे इसके लिए बीजेपी चाहेगी कि किसी आदिवासी या पिछड़े के हाथ में प्रदेश की सत्ता सौंपे। छत्तीसगढ़ में नए नेतृत्व को आगे के लिए तैयार करना भी जरूरी है। अगर किसी फ्रेश चेहरों को सीएम बनाते हैं और वो अच्छा काम करता है तो बीजेपी को आगामी 15 सालों के लिए एक नया नेता मिल जाएगा।
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