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मरुधर गूंज, बीकानेर (26 मई 2024)। कालाष्टमी का त्योहार हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसी तरह ज्येष्ठ माह में कालाष्टमी व्रत 30 मई को रखा जाएगा। तंत्र विद्या सीखने वाले लोग कालाष्टमी के दिन काल भैरव देव की विशेष पूजा करते हैं। इस दिन व्रत रखने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, काल भैरव की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है। भगवान काल भैरव की कृपा पाने के लिए कालाष्टमी के दिन अपनी राशि के अनुसार इन मंत्रों का जाप जरूर करें।
मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भैरव बाबा पापियों को दंड देते हैं इसलिए इसे भैरव बाबा की दंडापानी भी कहा जाता है। कालभैरव की सवारी श्वान अर्थात् कुत्ता है इसलिए इस दिन कुत्ते को दूध पिलाना चाहिए, इससे भगवान प्रसन्न होते हैं। वर्तमान में भैरव की उपासना बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में प्रचलित है लेकिन तंत्र साधना में भैरव के आठ स्वरूपों के बारे में बताया है। ये रूप भीषण भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, रुद्र भैरव, असितांग भैरव, संहार भैरव, कपाली भैरव, उन्मत्त भैरव हैं। इस दिन कालभैरव की पूजा करने से जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं और काल भय भी खत्म हो जाता है।
पुराणों के अनुसार, काल भैरव शक्तिपीठों के अंगरक्षक के रूप में सदा उनके साथ रहते हैं। इसलिए हर शक्तिपीठ के पास एक कालभैरव मंदिर जरूर पाया जाता है। कालभैरव को खिचड़ी, चावल, गुड़, तेल आदि का भोग लगाया जाता है। कालाष्टमी का यह व्रत रोग, दुख और शत्रु पीड़ा निवारण में सहायक होता है। इस दिन आप कालभैरव की प्रिय वस्तुओं को दान में दे सकते हैं, जैसे – नींबू, अकौन के फूल, काले तिल, मदिरा, धूप दान, मदिरा, सरसों का तेल, उड़द की दाल, पुए आदि चीजें।
कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से नकारात्मक शक्तियां, शत्रु और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। अगर कोई ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो कालभैरव का व्रत करने से क्रूर ग्रहों का प्रभाव भी खत्म हो जाता है और शुभ फल देना शुरू कर देते हैं। इनकी पूजा-पाठ से किसी भी प्रकार का जादू-टोना खत्म हो जाता है, भूत-प्रेत से मुक्ति मिलती है और भय आदि भी खत्म हो जाता है, ऐसा मान्यताएं कहती हैं। लाल किताब में काल भैरव को शनि का अधिपति देव बताया गया है और इनकी पूजा से शनि दोष, राहु-केतु से प्राप्त हुई पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
कालाष्टमी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नाना आदि नित्य-क्रम से स्वच्छ होकर लकड़ी के पाट पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद चारों तरह गंगाजल का छिड़काव करें और सभी फूलों की माला या फूल अर्पित करें। इसके साथ ही नारियल, इमरती, पान, मदिरा, गेरुआ आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद चौमुखी दीपक जलाएं और धूप-दीप करें और कुमकुम या हल्दी से सभी को तिलक लगाएं और सभी की एक-एक करके आरती उतारें। इसके बाद शिव चालिसा और भैरव चालिसा का पाठ करें। आप बटुक भैरव पंजर कवच का भी पाठ कर सकते हैं। इसके साथ ही भैरव मंत्रों की 108 बार जप करें और इसके बाद कालभैरव की उपासना करें। व्रत के पूर्ण हो जाने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी या फिर कच्चा दूध पीलाएं और दिन के अंत में कुत्ते की भी पूजा करें। इसके बाद रात्रि के समय काल भैरव की सरसों के तेल, उड़द, दीपक, काले तिल आदि से पूजा-अर्चना करें और रात्रि जागरण करें।
शिवपुराण में कालभैरव की पूजा के दौरान इन मंत्रों का जप करना फलदायी माना गया है।
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
ओम भयहरणं च भैरव:।
ओम कालभैरवाय नम:।
ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
ओम भ्रं कालभैरवाय फट्।
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