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मरुधर गूंज, बीकानेर (6 जून 2024)। क्या योगी से पंगा लेना जेपी नड्डा को भारी पड़ गया? एकलव्य का अंगूठा किसने काटा! 35 हारने वाले सांसदों का नाम योगी ने पहले दिया, फिर भी नड्डा ने नज़र अन्दाज क्यों किया! क्या नड्डा से किसी भाजपा नेता ने कहा था, योगी को सीरियस नहीं लेना! क्यों उठने लगे सवाल? यादव को भाजपा बना सकती है अध्यक्ष या फिर शाह खुद संभाल सकते है भाजपा की कमान! क्या भाजपा में नड्डा की कुर्सी जाने वाली है! क्या कई राज्यों के सीएम और शाह से गृहमंत्रालय भी जाने वाला है? नितिन गडग़ड़ी का भी अब चला जाएगा। अब भाजपा में बड़ा तुफान आने वाला है। हम आपको अब बताते है कैसे सब कुछ बदल गया। अमित शाह अब संगठन में वापस आयेंगे या उन्हें आना ही पड़ेगा। क्योंकि भाजपा के इस बड़े नुकसान में जेपी नड्डा का किरदार बहुत बड़ा है। 4 जून को जब नतिजे आये और भाजपा संकट आयी जेपी नड्डा ने नहीं बल्कि शाह ने भाजपा की कमान संभाली। नितिश कुमार से लेकर नायडू तक को संभालने का काम अमित शाह ने किया था ना कि नड्डा ने। भाजपा में नराजगी एक बड़ा विषय बन सकती है। दूसरा मोदी और शाह की लोबी से भी भाजपा को बड़ा असर पड़ा है। जेपी नड्डा ने वो काम नहीं किया जो काम उन्हें सोपा गया था। भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन बनेंगा इस पर भी पार्टी में चर्चाएं अधिक हो गयी है। क्या अध्यक्ष शाह होंगे या ओबीसी हार्ड फैस मोहन यादव होंगे।शिवराज सिंह चौहान या यूपी से केशव प्रसाद मौर्य को भी जगह मिल सकती है। जेपी नड्डा जमीन पर सही आंकलन नहीं कर पाए, मोदी और शाह को सही रिपोर्ट नहीं दे पाए। सर्वे रिपोर्ट में उम्मीदवारों पर लेकर रिपोर्ट आई थी लेकिन नड्डा नहीं संभाल पाए। यूपी से योगी की राय नहीं ली गई। राजस्थान में भी मनमाने तरीके से टिकट बांटे गए। भाजपा में शाह के अलावा कोई ऐसा विकल्प नहीं है जो पार्टी को दोबारा खड़ा कर सके। मोदी और शाह ने सोचा साथ मिलकर सरकार चलाएंगे, लेकिन संगठन को क्या दोनों ही भूल गए? मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव भाजपा हार रही थी, लेकिन शाह ने अपने दिमाग से जिताया था। जेपी नड्डा के अध्यक्ष रहते ही भाजपा उनके गृह राज्य हिमाचल में सत्ता से दूर हो गई। अब नड्डा ने योगी से पंगा किस आधार पर लिया होगा। क्या नड्डा खुद योगी की जगह लेने का सपना देख रहे थे। क्या कुछ और चल रहा है। क्योंकि योगी का नाम देश और देश के बाहर भी लिया जाता है। नड्डा बैसक भाजपा के अध्यक्ष हो क्या उनकी पहचान योगी की तरह है। भाजपा अब किसी ओबीसी को अध्यक्ष बनाने जा रही है। क्या शिवराज सिंह चौहान पार्टी अध्यक्ष बन सकते है। क्योंकि वो चौहान है और ओबीसी से आते है। एक तरफ तेजस्वी यादव है तो दूसरी ओर अखिलेश यादव जैसे बड़े नेता है जो हार्ड ओबीसी फेस से मोहन यादव को मध्यप्रदेश के सीएम पद से हटाकर दिल्ली में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है। या फिर राजनाथ सिंह को दोबारा अध्यक्ष बनाया जाएगा। कुछ तो बड़े फैसले संगठन में होने वाले है। हम ये नहीं कहते है कि टिकट सही होता तो भाजपा 400 पार हो जाती। लेकिन एनडीए 350 जरूर जीत सकती थी। जेपी नड्डा के साथ उनके नेताओं का कद छोटा हो सकता है। कांग्रेस से आए नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। कहा जा रहा है कि हरियाणा की सिरसा सीट पर कभी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर कांग्रेस के बाद अपनी पार्टी बनाते हैं, फिर भाजपा में आते हैं और भाजपा उन्हें टिकट देती है। आप हैरान होंगे कि भाजपा सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर अशोक तंवर को देती है जबकि 2019 में सुनीता दुग्गल कांग्रेस उम्मीदवार को 3 लाख से ज्यादा वोटों मात दी थी, फिर वहां क्यों काटा गया। क्या जेपी नड्डा से भाजपा ये सवाल नहीं पूछेगी। क्या कांग्रेस नेताओं के लगाव से ही भाजपा को कई सीटों का नुकसान हो गया। योगी आदित्य नाथ की जेपी नड्डा की मुलाकात तक नहीं हुई। यहां तक नड्डा ने एक बार भी योगी से नहीं पूछा कौन सी सीट पर हम हारेंगे और कौन सी सीट पर हम जीतेंगे। दावा यहां तक भी किया जा रहा है कि योगी ने पहले ही 35 नाम भेजे थे। जबकि नड्डा ने की एक को भी नहीं चुना। यहां भाजपा से दो बड़ी गलती हो गई। पहला भाजपा ने नड्डा पर ज्यादा भरोसा किया। दूसरा योगी जैसे टॉप लिडर की एक भी नहीं सुनी। नतिजा 400 तो दूर 300 के नीचे एनडीए के साथ सिमट गई।
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