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मरुधर गूंज, बीकानेर (6 सितम्बर 2024 )। बात उन दिनों की है जब देश में 1857 की लहार में एक महान क्रांतिकारी, दानवीर सेठ रामदास जी गुडवाला दिल्ली के अरबपति सेठ और बेकर थे। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के गहरे दोस्त थे। इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी। उनकी अमीरी कि एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है कि उनकी दीवारों से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते हैं।” जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँची तो मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को 1857 की सैनिक क्रांति का नायक घोषित कर दिया गया। दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई। बादशाह का खजाना खाली था। एक दिन उन्होंने अपनी रानियों के गहने मंत्रियों के सामने रख दिये। रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे। रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कह दिया -
रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज, बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की। सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संगठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संगठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए। सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया। उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संगठन का निर्माण किया। देश के कोने-कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की इस संकट काल में बहादुर शाह जफर की मदद कर देश को स्वतंत्र करवाएं।
रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे। कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा। एक दिन उन्होंने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती और वहीं लेट जाती। अंग्रेजों को समझ आ गया की भारत पे शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है। सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा गया और जिस तरह से मारा गया वो क्रूरता की मिसाल है। पहले उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया फिर उन पर शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट' में लिखा है - "सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे। अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी। वह मुग़ल बादशाहों से भी अधिक धनी थे। यूरोप के बाजारों में भी उनकी अमीरी की चर्चा होती थी।" लेकिन भारत के इतिहास में उनका जो नाम है वो उनकी अतुलनीय संपत्ति की वजह से नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने की वजह से है। जिसे आज बहुत ही कम लोग जानते हैं।
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